बच्चों का अधिकार

जब मैं स्कूल teachers में  मिलता हूँ, तो अक्सर यह बात आती है की थोड़ा तो बच्चों को डराना पड़ता है थोड़ा तो उन्हे मारना होता है क्योंकि बच्चे को पता नहीं होता है की सही गलत क्या है |

मुझे लगता है मैं बोलू, सर /मैडम इस तरह से तो औरतों को मारना भी allow होना चाहिए| क्योंकि बहुत मर्द तो यह मानते ही औरतों को अकल नहीं होती और मर्दों को औरतों से ज्यादा पता है | अगर ऐसा है तो औरतों पे हाथ उठाया जा सकता है उनके भलाई के लिए|

मुझे पता है अगर मैं ऐसा बोलूँगा तो adults या teachers के लिए चौक देने वाली बात हो जाएगी | वो सोचेंगे कैसे कोई इंसान इतनी बेहूदी बात कर सकता है | देखो तो औरतों को मारने की बात कर रहा है |

लेकिन सच में तो  मैं बस adults या teachers द्वारा दिए गए तर्क को ही बच्चे के संदर्भ में रख के बात बोल रहा हूँ | क्या मेरी बात अच्छी नहीं लगी?

सोचिए पुराने समय में और अभी भी बहुत घरों में औरतों को क्यों मारा जाता है?  मेरे हिसाब से कारण तो यह है की मर्द उन्हे मार सकते है क्योंकि उन्हे ऐसा लगता है की औरते मर्दों से कमजोर है और उन्हे खतरा नहीं है |

यही मानसिकता तो होगी ? मुझे तो ऐसा लगता है और कोई कारण समझ में नहीं आ रहा|  तो बच्चों को मारने के पिछे भी तो यही मानसिकता है | हम उन्हे मारते है क्योंकि वो हमसे कमजोर है और हमे वापस से मार पड़ने का खतरा बहुत कम लगता है |

ईसलिए मुझे थोड़ा अजीब लगता है जब adults या teachers हक की बात करते है , teachers का हक , औरतों का हक, लेकिन यह हक जब बच्चों के बारे में आता है तो वो क्यों नहीं सोच पाते ?

मारना पीटना (violence) जो है वो corona virus महामारी के जैसा ही है | एक से दूसरे तक बहुत तेजी से फैलता है| जैसे कोरोना वायरस small सी जगह से start हो कर पूरा दुनिया में spread हो गया वैसे ही वाइअलन्स का भी जड़ , सोसाइटी में बहुत deep और दूर तक spread होता है |

घर में violence की start शायद पिता या पति द्वारा हो, लेकिन घर के बाहर पिता के बॉस फिर उनके बॉस , इसका रूट बहुत ऊपर तक है | समाज से violence को खत्म करना बहुत जटिल काम है | हमे लगता है यह जीवन का हिस्सा ही है , इसलिए इसे हम बच्चों पे justify करते है उन्हे strong बनाने के लिए |

समाज में इसे खत्म करने के लिए बहुत प्रयास किए जा रे है | गांधी जी का non-violence मोमेंट उसमे से एक था | लेकिन एक individual की तरह भी हम इसे अपने जीवन में काम कर सकते है | बहुत सारे टकराव खत्म करने के skills होते है जिसमे से एक अपनी emotions को समझना और उसको व्यवस्थित (manage) करना भी | हमारी संस्था भी बच्चों, parents और teachers को यह skills सिखाने  में मदद करती है |


Author:

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Mr Kushal Agarwal is the founder of Monkey Sports. Since its inspection in 2018, Monkey Sports has worked with 1900 + children in 14 schools.

2 thoughts on “बच्चों का अधिकार”

  1. Nikhil says:

    Bache sabse zyada sensitive hote h..choti si baat ka unme gehra asar pad sakta h..main aapki baat se puri tarah sehmat hoon.

  2. Sneha Dwivedi says:

    बहुत बढ़िया article कुशल जी। बच्चा जैसे वातावरण में परिपक्व है वैसा ही आचरण समाज में करताहै। हिंसा और तनावयुक्त वातावरणमें पल-बढ़ रहे बच्चों से किस प्रकार के समाज की परिकल्पना की जा सकती है।

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