मैंने भिक नहीं हक मांगा है | (बिलासपुर के कलेक्टर से मिलने का मेरा अनुभव)

कुछ दिन पहले की  बात है , मैं कुछ काम से दिल्ली जा रहा था | दिल्ली की मेरी ट्रेन बिलासपुर से थी इसलिए मैं रायगढ़ से शताब्दी पकड़ के सुबह 9 बजे बिलासपुर आ गया | दिल्ली जाने वाली ट्रेन संपर्क क्रांति  तीन बजे थी, और मेरे पास 4-5 घंटे का समय  फ्री था इसलिए मैंने सोचा  कुछ लोगों से मिल लू | साथ में मेरी वाइफ भी थी |

मिलने के लिस्ट में पहला नाम SECL (South Eastern Coal India) था | SECLसे मिलने का मेरा purpose था की उनसे बात करके अपने एनजीओ के लिए कुछ पैसे ला सकु | अनलाइन जानकारी से मुझे पता चला था की वो समाजिक काम में हर साल 10-12 करोड़ रुपए लगाते है | पिछले साल तो उन्होंने 5 करोड़ रुपये केवल स्कूलों में स्मार्ट बोर्ड लगाने में किया था | यह बात जानकार मुझे काफी दुख हुआ था क्योंकि मैंने किसी भी स्कूल में इसका इस्तमल होते नहीं देखा था |

SECL में जाके हमे  पता चला की उनका सारा पैसा कलेक्टर के पास जाता है और वही से अलग अलग डिपार्ट्मन्ट में जाता है | मैंने सोचा एक बार कलेक्टर से भी मिलना चाहिए | शायद वो हमारी बात समझेंगे यह सोचकर मैं और  मेरी वाइफ कलेक्टर ऑफिस पहुच गए |

ऑफिस पहुच के पाता चला की कलेक्टर सर ऑफिस में है नहीं है और हमे कुछ देर इंतजार करना पड़ेगा | हम इंतजार करने लग गए तभी मेरी वाइफ ने मुझसे बोला “ तुम बहुत धीरे धीरे बोलते हो | सर झुकाकर | अपनी बातों को आत्मविश्वास से
रखा करो | मैंने बोला ठीक है कलेक्टर से मिलने का मौका मिलेगा तो पूरी कोशिश करूंगा |

इसी बीच कलेक्टर भी आ गए और हमे बुलाया गया | मैं थोड़ा नर्वस था लेकिन सोचा अपनी वाइफ के आगे पूरे आत्मविश्वास से बात करना है | अंदर जाकर हम सीट पर बैठे और कलेक्टर ने बिना हमारे तरफ देखे बोला “ बोलिए क्या काम है “

मैं अपनी आवाज को बुलंद करते हुए बोला “ सर , मेरा नाम कुशल है |मैं रायगढ़ से  आया हूँ | वहा मैं primary और middle स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के साथ काम करता हूँ |

वो एक बार भी सर उठा के हमारी तरफ नहीं देखे | फिर भी मैंने अपनी बात जारी रखी “ सर , हम ऐसे बच्चों के साथ काम करते है , जो स्कूल नहीं जाते और जिन्होंने पढ़ाई छोड़ दी है | SECL गए तो वहा से पाता चल की.. 

ऊठईए “ उन्होंने उच्च स्वर में बोला और बाहर जाने का इशारा किया |

मैंने बोला “ सर , पूरी बात सुन तो लीजिए “

वो बोले “आपकी बात सुने फिर दूसरे की बात सुने यही करते रहे , जो भी कहना है लेटर में लिख के दीजिए “

इतना सुनकर हम बाहर आ गए |

यह बात सुनकर मेरी वाइफ को अपमान महसूस हुआ और वो बाहर आते ही रोने लगी |

बोली “तुम चाहते तो अमरीका में अच्छी नौकरी कर सकते थे | यहा पे अच्छा काम कर रहे हो , लेकिन किसी को फर्क नहीं पड़ता है | कितना भिक माँगोगे सबसे | मैं अब तुम्हें यह काम नहीं करने दूँगी |

मैंने उसको समझाते हुए बोला “ मैं भिक नहीं हक मांग रहा हूँ |  सरकार का यह काम है की वो सुनश्चित करे सब बच्चों को कम से कम आठवी तक अच्छी education मिल सके | Right to Education  के through यह तो बच्चों का हक है| ऊनके हक के लिए तो बोलना पड़ेगा ना |

वो बोली “सारी ज़िंदगी यही करते रहोगे क्या ?” हमारी life का क्या ?

इन्ही बातों को करते करते हम बाहर आ गए और ऑटो पकड़ के बिलासपुर स्टेशन के तरफ अपनी दिल्ली वाली ट्रेन पकड़ने के लिए चल दिए |


Author:

Kushal_Headshot

Kushal is a entrepreneur with a master’s degree from Springfield College, USA. Before pursuing his master’s degree, Kushal worked for a global IT firm for six years before quitting.

He has a total of 4.5 years of experience in the education development sector. His primary interest is Social Emotional Learning to improve educational outcomes for primary and middle school children.

He has completed a one-year fellowship with the Azim Premji foundation where he was involved in teaching in a Primary school classroom. The experience has helped him to understand the issue children face at home and in school.

Kushal was a quiet child in class. But the confidence he gained from sports helped him to transform to be a better person academically, socially and emotionally. He started Monkey sports with the vision to empower children through sports.

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