सरकारी स्कूलो में खेल
मेरा हमेशा से मानना रहा है कि खेल स्कूल का एक important part हो। स्कूल एक ऐसा स्थान हो, जहां बच्चों को शारीरिक गतिविधि में शामिल होने का पर्याप्त अवसर मिले ताकि यह उनके lifestyle का हिस्सा बन सके।
ऐसा नहीं है कि बच्चे खेल गतिविधियों में बिल्कुल भी शामिल नहीं होते हैं। कुछ स्कूलों में यह देखने को मिलता है कि शिक्षक प्रार्थना सभा (Assembly) के दौरान शारीरिक प्रशिक्षण (PT Exercise) अभ्यास करते है अथवा स्कूल के अंतिम अवधि (last period) में भी बच्चों को खेलने के लिए छोड़ दिया जाता है। हालाँकि, यह दोनों ही स्थितियाँ संतोषजनक नहीं लगती।
पहले स्थिति में, पीटी अभ्यास के दौरान शिक्षक निर्देश देते हैं और एक सीधी रेखा में खड़े बच्चों को उनका पालन करना होता है। यहा बच्चों के प्रदर्शन का अंदाजा इस बात से लगाया जाता है कि वे कितनी अच्छी तरह और कितनी जल्दी निर्देशों का पालन कर पा रहे हैं। आप इसपर विचार कर सकते है कि एक बच्चा ऐसी गतिविधि से क्या सीख रहा है?
क्या यह स्थिति (जहा बच्चे सिर्फ निर्देशों का पालन कर रहे हो) आपको कुछ याद दिलाता है?
गुलामी की मानसिकता जिसे अंग्रेज बढ़ावा देना चाहते थे। हम सभी जानते हैं कि भारत में जन शिक्षा (सार्वजनिक शिक्षा) की शुरुआत इसी एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। अंग्रेज़ उन भारतियों को पसंद नहीं करते थे जो सोचने समझने वाले हो बल्कि वह ऐसे भारतियों को तैयार करना चाहते थे जो सिर्फ उनके दिये गए निर्देशों का पालन कर सके । पीटी अभ्यास उपनिवेशवाद (colonialism )का ही प्रतीक है जिसे हम अभी भी अपने स्कूलों में देख सकते हैं।
वहीं दूसरी स्थिति में जब बच्चे अंतिम अवधि के दौरान स्थानीय खेल में involve होते हैं। हालांकि स्थानीय खेल बच्चों को विभिन्न जीवन कौशलों को सीखने में मदद करते हैं, लेकिन इसमें कुछ समुदाय तथा लिंग के लोगों का बहिष्कार भी हो सकता है और समुदाय में मौजूद पूर्वाग्रह भी बने रह सकते हैं। जैसे – बच्चे आपस में झगड़ते हैं, दूसरे बच्चों को नहीं शामिल करना चाहते बहुत से बच्चे विशेषकर लड़कियों को खेलने का अवसर ही नहीं मिलता। लड़कियों को घर जाने के बाद पहले से ही घर के कामों में संलग्न होना पड़ता है और स्कूल में सभी को खेलने के अवसर नहीं मिलने से ऐसे पूर्वाग्रहों और द्वेष को बढ़ावा ही मिलता है।
हमें इन दोनों ही स्थितियों के बीच एक संतुलन खोजने की जरूरत है और शिक्षक ऐसे स्थितियों को निर्मित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है। हम जानते हैं कि शिक्षकों पर ऐसे ही कई कार्यक्रमों को लागू करने की ज़िम्मेदारी होती है ऐसे में एक और नई ज़िम्मेदारी उनके काम के बोझ को और बढ़ा सकती है।
इसलिए हमारा संगठन सरकारी स्कूल के शिक्षकों को आस-पास समुदाय से ऐसे स्वयंसेवकों को खोजने में मदद कर सकता है जो बच्चों के लिए इस तरह के नियमित कार्यक्रम आयोजित करने में मदद कर सकते हैं। यह सिर्फ भारतीय स्थानीय खेलों को पुनर्जीवित करने में ही नहीं, बल्कि स्कूल में उपस्थिति बढ़ाने और कक्षा में बच्चों के ध्यान को बेहतर करने में भी मदद करेगा।
Author:

Mr Kushal Agarwal is the founder of Monkey Sports. Since its inspection in 2018, Monkey Sports has worked with 1900 + children in 14 schools.